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Wednesday, April 24, 2024

GREAT MATHEMATICIAN AND ASTRONOMER - BRAHMGUPTA

GREAT MATHEMATICIAN AND ASTRONOMER - BRAHMGUPTA

भारत के इतिहास में कई ज्योतिषी खगोलशास्त्री व गणितज्ञ हुए है जिनमें आर्यभट,भास्कराचार्य प्रथम के बाद ब्रह्मगुप्त का नाम ही आता हैं।ब्रह्मगुप्त भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे।उनका जन्म 598 ई. में राजस्थान में भीनमाल में हुआ था।इनके पिता का नाम विष्णुगुप्त था।वें तत्कालीन गुर्जर प्रदेश(भीनमाल) के अंतर्गत आनेवाले प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।


भौगोलिक शास्त्री व गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का जन्म 598 ई. में पश्चिम भारत के भिन्नमाल नामक स्थान पर एक वैश्य परिवार में हुआ था।ब्रह्मगुप्त के जन्म के समय भिन्नमाल गुजरात की राजधानी हुआ करती थी।भिनमाल नामक स्थान के बारे में अलग-अलग शोधकर्ताओं और इतिहासकारों ने अपने अलग-अलग विचार प्रस्तुत किए हैं।
 
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार यह प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है कि महान खगोल शास्त्री व गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त वैश्य सेठ समाज से ही थे।डॉक्टर वी.ए. अस्मित ने ब्रह्मगुप्त के विषय में कहा था कि वह उज्जैन नगरी में निवास करते थे और वहीं पर कार्य करते थे।भास्कराचार्य के अनुसार ब्रह्मगुप्त चांपवंशी राजा के राज्य में निवास करते थे।
 
ब्रह्मगुप्त प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ थे।उन्होंने भारतीय गणित को सर्वोच्च शिखर पर पहुचा दिया था।यही वजह है की बाहरवी शताब्दी के विख्यात ज्योतिष गणितज्ञ भास्कराचार्य ने उन्हें गणक चक्र चूडामणि के नाम से संबोधित किया था।

आर्यभट्ट के बाद भारत के पहले गणित शास्त्री भास्कराचार्य प्रथम और उसके बाद ब्रह्मगुप्त हुए।वे खगोल शास्त्री भी थे।उन्होंने शून्य के उपयोग के नियम खोजे थे।उनकें मुलाको को ज्योतिषी भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि का आधार माना हैं।उनके ग्रन्थ में ब्रह्मास्फुट सिद्धांत और खंड खाद्यक बेहद प्रसिद्ध हैं।

ब्रह्मगुप्त के ये ग्रन्थ इतने प्रसिद्द हुए कि अरब के खलीफाओं के राज्यकाल में उनका अनुवाद अरबी भाषा में कराया गया।उनके ग्रंथों को अरब देश में अल सिंद हिंद और अल अर्कंद के नाम से जाना गया।इन ग्रंथों के माध्यम से ही पहली बार अरबों को भारतीय गणित और ज्योतिष का ज्ञान प्राप्त हुआ।इस तरह से ब्रह्मगुप्त अरबी के गणितज्ञ एवं ज्योतिषियों के गुरु थे।ब्रह्मास्फुट सिद्धांत उनका सबसे पहला ग्रन्थ था।उसमें शून्य को एक अलग ग्रन्थ के रूप में बताया गया।इस ग्रंथ में ऋणात्मक अंकों और शून्य पर गणित के सभी नियमों का वर्णन किया गया हैं।उनके ग्रंथ में बीजगणित भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है।उन्होंने बीजगणित का पर्याप्त विकास किया और ज्योतिष के प्रश्नों को हल करने में उनका प्रयोग किया।ज्योतिष विज्ञान भी विज्ञान और गणित पर ही आधारित हैं।ब्रह्मगुप्त ने चक्रीय चतुर्भुज में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।ब्रह्मगुप्त ने बताया कि चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं।668 ई में ब्रह्मगुप्त की मृत्यु हो गई।

गणित के क्षेत्र में ब्रह्मगुप्त ने अपना जो सूत्र प्रतिपादित किया था वह उनका सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। ब्रह्मगुप्त का सूत्र चक्रीय चतुर्भुज पर आधारित है।

ब्रह्म गुप्त के सूत्र के अनुसार चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण परस्पर लम्बवत होते हैं।ब्रह्म गुप्त ने अपने सूत्रों में चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल निकालने का तरीका बताया था।चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के लिए ब्रह्मगुप्त ने दो तरह के सूत्रों का वर्णन किया था पहला सूत्र सन्निकट सूत्र जिसे अंग्रेजी में approximate formula कहते हैं और दूसरा सूत्र यथातथ सूत्र है इसे अंग्रेजी में exact formula कहते हैं।

सन्निकट सूत्र के अनुसार चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का फार्मूला (p+r/2) (q+s/2) होता है और यथातथ सूत्र के अनुसार चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल का फार्मूला √(t-p)(t-q)(t-r)(t-s) होता है।

ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में जितने भी योगदान दिए हैं उन सभी योगदानों को आज भी विश्व गणित में याद किया जाता है।628 ईसवी में लिखी गई 'ब्रह्मस्फुटसिद्धांत' उनका सबसे पहला ग्रन्थ माना जाता है जिसमें शून्य का एक अलग अंक के रूप में उल्लेख किया गया है।यही नहीं, बल्कि इस ग्रन्थ में ऋणात्मक (negative) अंकों और शून्य पर गणित करने के सभी नियमों का वर्णन भी किया गया है।

"ब्रह्मस्फुटसिद्धांत" के साढ़े चार अध्याय मूलभूत गणित को समर्पित हैं। १२वां अध्याय, गणित, अंकगणितीय शृंखलाओं तथा ज्यामिति के बारे में है।१८वें अध्याय, कुट्टक(बीजगणित) में आर्यभट्ट के रैखिक अनिर्धार्य समीकरण(linear indeterminate equation, equations of the form ax − by = c) के हल की विधि की चर्चा है।(बीजगणित के जिस प्रकरण में अनिर्धार्य समीकरणों का अध्ययन किया जाता है, उसका पुराना नाम ‘कुट्टक’ है।ब्रह्मगुप्त ने उक्त प्रकरण के नाम पर ही इस विज्ञान का नाम सन् ६२८ ई. में ‘कुट्टक गणित’ रखा।)[1] ब्रह्मगुप्त ने द्विघातीय अनिर्धार्य समीकरणों (Nx2 + 1 = y2) के हल की विधि भी खोज निकाली।इनकी विधि का नाम चक्रवाल विधि है।गणित के सिद्धान्तों का ज्योतिष में प्रयोग करने वाला वह प्रथम व्यक्ति था।उनके ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के द्वारा ही अरबों को भारतीय ज्योतिष का पता लगा।अब्बासिद ख़लीफ़ा अल-मंसूर(७१२-७७५ ईस्वी) ने बग़दाद की स्थापना की और इसे शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित किया।उसने उज्जैन के कंकः को आमंत्रित किया जिसने ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के सहारे भारतीय ज्योतिष की व्याख्या की।अब्बासिद के आदेश पर अल-फ़ज़री ने इसका अरबी भाषा में अनुवाद किया।

ब्रह्मगुप्त ने किसी वृत्त के क्षेत्रफल को उसके समान क्षेत्रफल वाले वर्ग से स्थानान्तरित करने का भी यत्न किया।ब्रह्मगुप्त ने पृथ्वी की परिधि ज्ञात की थी,जो आधुनिक मान के निकट है।

ब्रह्मगुप्त पाई(π) (३.१४१५९२६५) का मान १० के वर्गमूल (३.१६२२७७६६) के बराबर माना।

ब्रह्मगुप्त अनावर्त वितत भिन्नों के सिद्धांत से परिचित थे। इन्होंने एक घातीय अनिर्धार्य समीकरण का पूर्णाकों में व्यापक हल दिया, जो आधुनिक पुस्तकों में इसी रूप में पाया जाता है और अनिर्धार्य वर्ग समीकरण,K y2 + 1 = x2, को भी हल करने का प्रयत्न किया।

इस पुस्तक के साढ़े चार अध्याय मुख्य रूप से गणित पर आधारित है।ब्रह्मगुप्त के पुस्तक में बीजगणित को सबसे ऊपर रखा गया है।ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक में वर्गीकरण के विधि का भी बहुत ही सरल वर्णन किया है।ब्रह्मगुप्त ने अपनी पुस्तक में गणित के विलोम विधि का भी वर्णन किया है।

668 ईस्वी में ब्रह्मगुप्त जी ने खण्डखाद्य की रचना की थी।अपने इस पुस्तक में उन्होंने ज्योतिषी पंचांग का वर्णन किया था।ब्रह्मगुप्त के मूलांकों को सिध्दान्त शिरोमणि का आधार बना कर भास्कराचार्य ने अपने ग्रंथ की रचना की थी।
 
उज्जैन में ब्रह्मगुप्त ने काफी समय तक कार्य भी किया था।उन्होंने उज्जैन के वेधशाला में प्रमुख के तौर पर कई समय तक कार्य भी किया था।अपने गणित पद्धतियों से उन्होंने पृथ्वी की परिधि ज्ञात की थी।
 
प्राचीन भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए और उन्हें गणित के बारे में नई चीजें बताने के लिए ग्रंथ की भी रचना की थी।ब्रह्मगुप्त ने अपने कार्यकाल के दौरान दो महान ग्रंथों की रचना की थी। इन दोनों ग्रंथ के नाम हैं –

ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त और खण्डखाद्यक या खण्डखाद्यपद्धति. ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त नामक इस ग्रंथ की रचना ब्रह्मगुप्त ने 628 ईसवी में की थी।और फिर कुछ समय बाद ब्रह्मगुप्त ने अपने दूसरे खण्डखाद्यपद्धति की रचना 665 ईसवी में किया था।उन्होंने गणित के विचारों को अपने दूसरे ग्रंथ में भी वर्णन किया है जिसका नाम ध्यानग्रहोपदेश है।ब्रह्मगुप्त की दोनों पुस्तकों को अरबी भाषा में अनुवाद किया गया था।ब्रह्मगुप्त के अरबी में अनुवादित पुस्तक का नाम सिंद-हिंद’ और अलत-अरकन्द है।
 
महान गणितज्ञ,ज्योतिषी और खगोल शास्त्री ब्रह्मगुप्त की मृत्यु 668 ईस्वी में हो गई थी।लेकिन आज भी गणित के क्षेत्र में ब्रह्मगुप्त के योगदान को सर्वोपरि माना जाता है।ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में जो विचार प्रस्तुत किए थे उनका बाद में अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया था।ब्रह्मगुप्त के अरबी गणित में आने से अरबी गणित काफी सशक्त हो गया था।




Tuesday, April 23, 2024

नेपाल बनिया - (Newar caste)

नेपाल बनिया - (Newar caste)


Bania (Newar caste)


Itum Bahal, Kathmandu. The surrounding area is a traditional Bania neighborhood.

Newari Banias (Devanagari: बनिया) are a Bania caste from the Newar community of the Kathmandu Valley in Nepal. The name Bania is derived from the Sanskrit word vanijya (merchant); by preference, Bania (caste).

Banias belong to the Urāy group which includes Tuladhar, Kansakar, Tamrakar, Sthapit, Sindurakar, Selalik and other castes. They speak Nepal Bhasa as a mother tongue and follow Newar Buddhism.

Traditional occupation

Banias are traditionally herbalists and wholesalers of raw materials for Newar, Tibetan and Āyurvedic traditional medicines. Traditional Bania neighborhoods in Kathmandu are Itum Bahal, Bania Chuka and Jhwabahal where the streets are lined with herbal shops.

Cultural life

Banias participate in the performance of Gunla Bajan religious music. Samyak is the greatest Newar Buddhist festival held every 12 years in Kathmandu where statues of Dipankara Buddha are displayed. During this festival, each Urāy caste has been assigned a duty from ancient times, and Banias have the task of preparing and serving "sākhahti", a soft drink made by mixing brown sugar and water

Panchthariya (Vaishyas): Usually the rich trading clans who now mostly write Shrestha. And also included is the Buddhist Uray of Kathmandu (Tuladhar, Kansakar, Bania, Sthapit) as well as Halwai/Rajkarnikar and Tamrakars of Patan, Shresthas of Dhulikhel and Banepa.

बनारस (बनिया), नेवार्स, नेपाल का उपखंड

नेवारी बनिया (देवनागरी: बनिया) नेपाल में काठमांडू घाटी के नेवार समुदाय की एक बनिया जाति है। बनिया नाम संस्कृत शब्द वाणिज्य (व्यापारी) से लिया गया है.

बनिया उरे समूह से संबंधित हैं जिनमें तुलाधार, कंसाकर, ताम्रकार, स्थापित, सिंदुराकर, सेलालिक और अन्य जातियाँ शामिल हैं। वे मातृभाषा के रूप में नेपाल भाषा बोलते हैं और नेवार बौद्ध धर्म का पालन करते हैं।

पंचथरिया (वैश्य): आमतौर पर अमीर व्यापारिक कबीले जो अब ज्यादातर श्रेष्ठ लिखते हैं। और इसमें काठमांडू के बौद्ध उरे (तुलाधार, कंसकर, बनिया, स्थापित) के साथ-साथ पाटन के हलवाई/राजकर्णिकार और ताम्रकार, धुलीखेल और बनेपा के श्रेष्ठ भी शामिल हैं।

पारंपरिक व्यवसाय

बनिया पारंपरिक रूप से जड़ी-बूटी विशेषज्ञ और नेवार, तिब्बती और आयुर्वेदिक पारंपरिक दवाओं के लिए कच्चे माल के थोक व्यापारी हैं। काठमांडू में पारंपरिक बनिया पड़ोस इतुम बहल, बनिया चूका और झवाबहल हैं जहां सड़कें जड़ी-बूटियों की दुकानों से सजी हैं।

सांस्कृतिक जीवन

बनिया गुंला बाजन धार्मिक संगीत के प्रदर्शन में भाग लेते हैं। सम्यक काठमांडू में हर 12 साल में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा नेवार बौद्ध त्योहार है जहाँ दीपांकर बुद्ध की मूर्तियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। इस त्योहार के दौरान, प्रत्येक उरे जाति को प्राचीन काल से एक कर्तव्य सौंपा गया है, और बनिया को ब्राउन शुगर और पानी को मिलाकर बनाया गया शीतल पेय "सखाती" तैयार करने और परोसने का काम सौंपा गया है।

उल्लेखनीय बनिया

ईश्वरानंद श्रेष्ठाचार्य, लेखक और भाषाविद्

Sunday, April 21, 2024

ASHOK KAJARIA - KAJARIA CERAMICS

ASHOK KAJARIA - KAJARIA CERAMICS

दुनिया में घूमकर देखे 50 कारखाने, फिर लगा दिया अपना प्लांट, देश की मिट्टी से बनाने लगे सोना! आज अरबपति


अशोक कजारिया ने अमेरिका में इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी. भारत वापस आए और अपने परिवार के धंधे में शामिल हो गए. खाड़ी देशों की यात्रा में उन्हें फर्श टाइलों की डिमांड का पता चला. स्पेन जाकर उन्होंने 50 कारखाने देखे, और 1985 में स्पेन की मदद से भारत में कजारिया सिरेमिक्स (Kajaria Ceramics) की स्थापना की. बेहतरीन मार्केटिंग और बाजार के ट्रेंड के अनुकूल बदलावों से कंपनी ने खूब तरक्की की. आज कजारिया भारत की नंबर 1 और दुनिया की 8वीं सबसे बड़ी टाइल निर्माता कंपनी है. पूरी कहानी काफी दिलचस्प है, जिसे पढ़ा ही जाना चाहिए.

जब अशोक कजारिया अमेरिका से अपनी डिग्री छोड़ने का साहसिक कदम उठाया तो कइयों को लगा कि शायद वह गलत कर रहा है. वे वापस आए और अपने परिवार के कच्चे लोहे के व्यापार में लग गए. वे खाड़ी देशों की सेल्स के लिए आने-जाने लगे. इसी यात्रा के दौरान अशोक को कुछ दिलचस्प मिला, जिससे उनका फ्यूचर पूरी तरह बदल गया.

यात्रा के दौरान किस्सा था यह था कि कास्ट खरीदार फर्श पर लगने वाली टाइलों में भी रुचि रखते थे. उन्होंने कहा कि अगर वह इसे बना सकते हैं तो वे (खरीदार) उसे स्पेन तक पहुंचा सकते हैं. अशोक को बात अच्छी लगी और सहमत हो गए. उन्होंने 50 कारखानों की विजिट की. वह भारत में अपना खुद का कारखाना स्थापित करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने स्पेन की टॉप कंपनी – टोडाग्रेस (Todagres) संग साझेदारी की. 1985 में, कजारिया सिरेमिक्स (Kajaria Ceramics) का जन्म हुआ.

सिकंदराबाद में लगाया पहला प्लांट

अशोक कजारिया की योजना काफी सरल थी. टोडाग्रेस टेक्निकल नॉलेज में मदद करेगा और कजारिया सिरेमिक फर्श टाइल कारखाना शुरू करेगा. 1988 तक, कजारिया ने सिकंदराबाद (यूपी) में अपना पहला प्लांट शुरू किया, जिसकी क्षमता प्रति वर्ष 1 मिलियन वर्ग मीटर थी.

सेल शुरू करने के लिए, अशोक ने मार्केटिंग का सहारा लिया और 1989 में कजारिया का पहला विज्ञापन आया. विज्ञापन ने ग्राहकों को कजारिया की बेहतर गुणवत्ता की ओर मोड़ दिया और यह सिर्फ दो वर्षों में मार्केट लीडर बन गया. लेकिन, 1995 आते-आते ट्रेंड बदल गया.

यूरोप ने बड़े आकार के टाइल बनाने शुरू कर दिए. अशोक को छोटे फर्श टाइल्स से लंबी दीवार टाइल्स बनाने की ओर रुख करना पड़ा. मार्च 1998 में, उन्होंने गाइलपुर (राजस्थान) में एक और कारखाना चालू किया, जिसकी क्षमता प्रति वर्ष 6 मिलियन वर्ग मीटर दीवार टाइलें थी. यह कारखाना गेम चेंजर साबित हुआ.

कजारिया ने 2007 में 528.9 करोड़ रुपये की सेल को छुआ. इसने रिकॉर्ड 20.79 मिलियन वर्ग मीटर टाइलें बेचीं. जब 2008 में बाजार धराशायी हो गया, तो कजारिया NSE पर सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय टाइल कंपनी बन गई. आज (15 अप्रैल 2024) को कजारिया का मार्केट कैप 19,305.29 करोड़ रुपये है. आज इसके शेयर ने NSE पर 1212.20 रुपये पर क्लोजिंग दी है. तो लौटते हैं स्टोरी पर. सेल अच्छी हो रही थी, शेयर मार्केट में कंपनी लिस्ट हो चुकी थी. तभी, अशोक कजारिया ने एक और नया ट्रेंड देखा.

हार्डवेयर दुकानों से परेशान ग्राहकों को दिया सॉल्यूशन

लोग हार्डवेयर की दुकानों से टाइल खरीदने से नाराज थे. न तो वहां पर ज्यादा विकल्प थे और न ही अच्छा कस्टमर एक्सपीरियंस. इसलिए अशोक ने अपना 3,000 वर्ग फुट का टाइल शोरूम – कजारिया वर्ल्ड (Kajaria World) खोलना शुरू किया. 2012 तक, कजारिया वर्ल्ड 17 आउटलेट तक बढ़ गया और 1045.71 करोड़ रुपये की बिक्री को छुआ.

साथ ही, यूरोपीय बाजार ग्रेनाइट टाइल्स से विट्रिफाइड टाइल्स की ओर चला गया. इसलिए, अशोक ने अपने दो कारखानों में उनका उत्पादन शुरू कर दिया. 2015 तक, कजारिया ने पॉलिश और ग्लेज्ड विट्रिफाइड टाइल्स बेचकर 1600 करोड़ रुपये कमाए. यह एक यूनिकॉर्न बन गया और 8000 करोड़ रुपये के मूल्यांकन को छू गया.

कजारिया ने बाथवेयर (केरोविट) की संबंधित श्रेणी में वृद्धि और विस्तार किया. 2016 में इसने अभिनेता अक्षय कुमार को भी ब्रांड एंबेसडर के रूप में साइन किया. कंपनी की टैगलाइन थी- “देश की मिट्टी से बनी टाइल.” और अक्षय के विज्ञापन से ब्रांड को और ऊंचाई मिली.

2019 तक, कजारिया ने बिक्री में तेजी से बढ़ोतरी हुई और बाजार में 11% हिस्सेदारी हासिल कर ली. कंपनी का मुनाफा भी काफी बढ़ा और इसकी वैल्यूएशन उसके दो सबसे बड़े प्रतिस्पर्धियों, सोमानी और सेरा से दोगुनी हो गई. (दोनों की सेल को मिलाकर). आज, कजारिया भारत की सबसे बड़ी सिरेमिक और विट्रिफाइड टाइल निर्माता कंपनी है और दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी कंपनी है. इसके छह प्लांट हैं, जिनकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 86.47 मिलियन वर्ग मीटर है.

अशोक कजारिया की नेट वर्थ

फोर्ब्स के अनुसार, दुनियाभर के अरबपतियों की सूची में अशोक कजारिया 2410वें नंबर पर आते हैं. उनकी नेट वर्थ 9 हजार करोड़ रुपये से अधिक (1.1 बिलियन डॉलर) है. अशोक कजारिया 1988 में स्थापित कजारिया सिरामिक्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक (Chairman and Managing Director) हैं. उनके दोनों बेटे, चेतन और ऋषि, संयुक्त प्रबंध निदेशक (Joint Managing Directors) के रूप में कंपनी चलाने में उनकी मदद करते हैं. फिलहाल, बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह कजारिया के ब्रांड एम्बेसडर हैं.

PROF. AVINASH KR. AGRAWAL - DIRECTOR OF JODHPUR IIT

PROF. AVINASH KR. AGRAWAL - DIRECTOR OF JODHPUR IIT

प्रोफेसर अविनाश कुमार अग्रवाल को आईआईटी, जोधपुर का निदेशक नियुक्त किया गया


भारतीय मैकेनिकल इंजीनियर, ट्राइबोलॉजिस्ट और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर अविनाश कुमार अग्रवाल को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जोधपुर का निदेशक नियुक्त किया है।

राजस्थान राज्य के करौली में 22 अगस्त 1972 को जन्में अविनाश कुमार अग्रवाल आंतरिक दहन इंजन , उत्सर्जन , वैकल्पिक ईंधन और सीएनजी इंजन पर अपने अध्ययन के लिए जाने जाते हैं।

प्रोफेसर अविनाश कुमार अग्रवाल ने मालवीय क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज (एमआरईसी) जयपुर (वर्तमान में मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, जयपुर ) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग (बीई) में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1994 में राजस्थान विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के ऊर्जा अध्ययन केंद्र से अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की, जहां से उन्होंने 1996 में ऊर्जा अध्ययन में एमटेक की उपाधि प्राप्त की। आईआईटी दिल्ली, के ऊर्जा अध्ययन केंद्र में, एलएम दास के मार्गदर्शन में उन्होंने 1999 में बायोडीजल-ईंधन संपीड़न इग्निशन इंजन पर अपनी पीएचडी की।

इसके बाद वह अपने पोस्टडॉक्टरल कार्य के लिए अमेरिका चले गए, जिसे उन्होंने 1999 और 2001 के बीच विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के इंजन रिसर्च सेंटर में पूरा किया । मार्च 2001 में भारत लौटने पर, वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में सहायक प्रोफेसर के रूप में शामिल हो गए। उन्हें 2007 में एक एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में पदोन्नत किया गया था और 2012 से मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर के रूप में संस्थान की सेवा कर रहे हैं। इस अवधि के दौरान उन्होंने विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में विदेश में सात छोटे कार्यकाल पूरे किए, पहला 2002 में लॉफबोरो विश्वविद्यालय के वोल्फसन स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियरिंग में, दूसरा और तीसरा, 2004 और 2013 में वियना के तकनीकी विश्वविद्यालय के फोटोनिक्स इंस्टीट्यूट में और 2013, 2014 और 2015 में हनयांग यूनिवर्सिटी, दक्षिण कोरिया में चौथा, पांचवां और छठा और 2016 में कोरिया एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (KAIST) में आखिरी कार्यकाल पूरे किया।

अग्रवाल के शोध ने इंजन दहन, वैकल्पिक ईंधन, उत्सर्जन और कण नियंत्रण, ऑप्टिकल निदान, मेथनॉल इंजन विकास, ईंधन स्प्रे अनुकूलन और ट्राइबोलॉजी के क्षेत्रों को कवर किया है और उनके काम ने कम लागत वाले डीजल ऑक्सीकरण उत्प्रेरक और सजातीय चार्ज संपीड़न इग्निशन के विकास में सहायता की है।

वह अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग (2013), सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स, यूएस (2012) के निर्वाचित फेलो हैं। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, इलाहाबाद (2018), रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री, यूके (2018), इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (2016), और इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग (2015) के फेलो रहे हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भारत सरकार की सर्वोच्च एजेंसी, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने उन्हें 2016 में इंजीनियरिंग विज्ञान में उनके योगदान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया , जो सर्वोच्च भारतीय विज्ञान पुरस्कारों में से एक है। अग्रवाल को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड की प्रतिष्ठित जेसी बोस फ़ेलोशिप प्रदान की गई है ।

वेब ऑफ साइंस की एक शाखा, क्लेरिवेट एनालिटिक्स के अनुसार, अग्रवाल भारत के 2018 के शीर्ष दस उच्च उद्धृत शोधकर्ताओं (एचसीआर) में से एक हैं।

Dr. Manindra Aggarwal - Director of kanpur IIT

Dr. Manindra Aggarwal - Director of kanpur IIT

Manindra Aggarwal Becomes Director Of Kanpur Iit

मणींद्र अग्रवाल बने कानपुर आईआईटी के निदेशक, कोरोना काल में इसलिए हुए थे चर्चित

वह कोरोना काल में गणितीय मॉडल सूत्र के जरिये महामारी के पैटर्न का सटीक आकलन कर चर्चित हुए थे।


देश की छह आईआईटी को बृहस्पतिवार को नए निदेशक मिल गए। मणींद्र अग्रवाल को आईआईटी-कानपुर का निदेशक बनाया गया है। वह कोरोना काल में गणितीय मॉडल सूत्र के जरिये महामारी के पैटर्न का सटीक आकलन कर चर्चित हुए थे।

आईआईटी कानपुर के अविनाश कुमार अग्रवाल आईआईटी-जोधपुर, आईआईटी खड़गपुर के अमित पात्रा आईआईटी-बीएचयू, आईआईटी-मद्रास के देवेंद्र जलिहाल आईआईटी-गुवाहाटी, सुकुमार मिश्रा आईआईटी-धनबाद और डीएस कट्टी आईआईटी-गोवा के निदेशक नियुक्त किए गए हैं।

PIYUSH BANSAL - A BIG ENTERPRENEUR

#PIYUSH BANSAL - A BIG ENTERPRENEUR

बिजनेस के लिए छोड़ी माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी, आज बन चुकें हैं हजारों करोड़ की कंपनी के मालिक


कहते हैं सफलता पाने के लिए कई बार रिस्क लेना पड़ता है। रिस्क लेने वाले ही इतिहास रचते हैं। लेंसकार्ट कंपनी के फाउंडर पीयूष बंसल ने ऐसा ही रिस्क लिया और आज वह सफलता का स्वाद चख रहे हैं। पीयूष बंसल (Peyush Bansal) ने बिजनेस करने के लिए अपनी माइक्रोसॉफ्ट की अच्छी खासी नौकरी को छोड़ दिया था। आज उनकी कंपनी लेंसकार्ट चश्मा बनाने वाली कंपनियों के बीच एक बड़ा नाम बन गई है। आज पीयूष अपने इसी बिजनेस से करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। पीयूष शार्क टैंक इंडिया में बतौर जज भी काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं। साल 2010 में बनी यह कंपनी आज अरबों रुपये की हो चुकी है। पीयूष ने अपने मिशन और विजन से कंपनी को इतनी सफलता दिलाई है। हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था। पीयूष को कई बार मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। आईए आपको बताते हैं पीयूष बंसल ने इतनी सफलता कैसे हासिल की।

अच्छे पैकेज वाली नौकरी छोड़ी

पीयूष साल 2007 तक यूएस में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में एक अच्छे पैकेज की नौकरी कर रहे थे। बढ़िया सैलेरी के बावजूद पीयूष कुछ अलग करना चाहते थे। 2007 में पीयूष ने तय किया कि वे अब अपने देश जाकर सपनों को पूरा करेंगे। माइक्रोसॉफ्ट में एक साल से भी कम समय तक काम करने के बाद पीयूष बंसल ने अपनी नौकरी छोड़ दी। उनके इस फैसले से परिवार और दोस्त हैरान थे, काफी समझाने के बाद भी वे नहीं माने और भारत लौट आए। यहां बाजार को समझने के लिए उन्होंने एक क्लासिफाइड वेबसाइट सर्च माइ कैंपस शुरू की। यहां छात्रों को किताबें, पार्ट टाइम जॉब और कारपुल जैसी चीजें ढूंढने में मदद की जाती थी। तीन साल तक पीयूष इस प्रोजेक्ट पर काम करते रहे। इसके जरिए इंडियन कस्टमर का बिहेवियर और रिक्वायरमेंट रीड करते रहे।

इस तरह हुई लेंसकार्ट की शुरुआत

तीन साल तक कस्टमर की जरूरतों को समझने के बाद पीयूष बंसल ने चाल अलग-अलग वेबसाइट्स लॉन्च की। इनमें से एक आईवियर थी। वहीं बाकी तीन कंपनियां यूथ को टारगेट करते हुए ज्वेलरी, घड़ी और बैग्स की थी। रिस्पांस को देखते हुए उन्होंने आईवियर पर फोकस किया औ यहीं से लेंसकार्ट की शुरुआत हुई। पीयूष बंसल ने आईवियर पर अपना पूरा ध्यान लगाते हुए देश के छोटे बड़े शहरों में आउटलेट्स खोलने शुरू किए, जहां हर रेंज के चश्मों के साथ आंखों के चेकअप की सुविधा भी दी जाने लगी। साथ ही इन चश्मों को ऑनलाइन मार्केट में बेचना शुरू किया गया।

पीयूष के इस यूनिक कॉन्सेप्ट को देखते हुए इन्हें कई इंवेस्टर्स मिले। धीरे-धीरे उनकी कंपनी सफलता की ओर आगे बढ़ने लगी। साल 2019 में लेंसकार्ट 1.5 अरब डॉलर की वैल्युएशन के साथ एक यूनिकॉर्न बन गई थी। आज पीयूष इस कंपनी से करोड़ों रुपयों की कमाई कर रहे हैं।

KUHU GARG IPS & BADMINTON CHAMPION

KUHU GARG IPS & BADMINTON CHAMPION 

देश की इस बैडमिंटन खिलाड़ी ने UPSC में भी गाड़ दिए सफलता के झंडे, हासिल की 178वीं रैंक; पिता रहे चुके हैं DGP


Kuhoo Garg ने यूपीएससी में 178वीं रैंक हासिल की.

देश की इस बैडमिंटन खिलाड़ी ने UPSC में भी गाड़ दिए सफलता के झंडे, हासिल की 178वीं रैंक; पिता रहे चुके हैं DGP

UPSC CSE Result 2023: कुहू गर्ग की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जोसेफ देहरादून से हुई थी. उन्होंने दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पढ़ाई पूरी की. कुहू ने यूपीएससी की तैयारी के दौरान एक दिन में 16 घंटे तक पढ़ाई की. हालांकि कुछ लोग 8 घंटे की पढ़ाई में भी यूपीएससी क्लियर कर लेते हैं, और उन्होंने भी कई दिन 8 से 10 घंटे की पढ़ाई की.

उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार की बेटी कुहू गर्ग ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में 178वीं रैंक हासिल कर बड़ी सफलता हासिल की है. कुहू बैडमिंटन में देश का नाम रोशन कर चुकी हैं. 56 ऑल इंडिया मेडल्स और 18 इंटरनेशनल मेडल्स कुहू के नाम हैं. उनका बैडमिंटन में मिक्स्ड डबल्स में टॉप इंटरनेशनल रैंक 34 और देश में मिक्स डबल्स रैंकिंग में नंबर-1 है.


खास बातचीत में कुहू गर्ग ने अपनी सफलता का श्रेय पूर्व आईपीएस अधिकारी पिता अशोक कुमार को दिया. बताया कि स्पोर्ट्स इंजरी के दौरान की मेहनत और बैडमिंटन ने उन्हें अनुशासन सिखाया. यही आगे जाकर यूपीएससी में सफलता का कारण बना.

देहरादून और दिल्ली से हुई पढ़ाई-लिखाई

कुहू गर्ग की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जोसेफ देहरादून से हुई थी. उन्होंने दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पढ़ाई पूरी की. कुहू ने यूपीएससी की तैयारी के दौरान एक दिन में 16 घंटे तक पढ़ाई की. हालांकि कुछ लोग 8 घंटे की पढ़ाई में भी यूपीएससी क्लियर कर लेते हैं, और उन्होंने भी कई दिन 8 से 10 घंटे की पढ़ाई की.

क्रिकेट को लेकर पूछा गया था सवाल

यूपीएससी के इंटरव्यू के दौरान पूछा गया था कि क्या क्रिकेट की वजह से बाकी सभी खेल खराब हो रहे हैं? क्या क्रिकेट को एक इंडस्ट्री बना दिया जाए? इसके जवाब में कुहू ने कहा कि क्रिकेट किसी भी खेल को प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि क्रिकेट देश में अच्छा होता जा रहा है और बाकी खेल भी बेहतर हो सकते हैं.

बैडमिंटन के खेल ने सिखाई दृढ़ता

कुहू ने यह भी बताया, परिवार के अलावा दोस्तों और सोसाइटी में रह रहे पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने उनकी काफी मदद की और उन्हें अच्छी गाइडेंस दी. उन्होंने यह भी बताया कि अगर वह बैडमिंटन खिलाड़ी नहीं होतीं, तो शायद यूपीएससी क्लियर करने के लिए उन्हें दृढ़ता से मेहनत करने की ताकत नहीं मिलती और अनुशासन भी नहीं होता. परिवार के सपोर्ट के बिना कोई भी परीक्षा मुश्किल हो जाती है.


उत्तराखंड के पूर्व DGP अशोक कुमार और उनकी बेटी कुहू गर्ग.

पिता IPS और मां प्रोफेसर

बता दें कि कुहू गर्ग के पिता अशोक कुमार 2020-23 तक उत्तराखंड के डीजीपी रहे. अशोक कुमार ने हरियाणा से प्रारंभिक पढ़ाई की और आईआईटी दिल्ली से इंजीनीरिंग की थी. वहीं, कुहू की माँ प्रोफेसर अलकनन्दा अशोक पंत विश्विविद्यालय में कार्यरत हैं. कुहू के दो भाई हैं जो पढ़ाई कर रहे हैं.

Thursday, April 18, 2024

Monday, April 15, 2024

KAVARAI VAISHYA - A TAMIL VAISHYA CASTE

KAVARAI VAISHYA - A TAMIL VAISHYA CASTE

Kavarai is the name for Balijas (Telugu trading caste), who have settled in the Tamil country. The name is said to be a corrupt form of Kauravar or Gauravar, descendants of Kuroo of Kauravar or Gauravar, of the Mahâbaratha, or to be the equivalent of Gauravalu, sons of Gauri, the wife of Siva. Other suggested derivatives are: 

(1) a corrupt form of the Sanskrit Kvaryku, meaning badness or reproach, or Arya, i.e., deteriorated Aryans; 

(2) Sanskrit Kavara, mixed, or Kavaraha, a braid of hair, i.e., a mixed class, as many of the Telugu professional belong to this caste; 

(3) Kavarai or Gavaras, buyers or dealers in cattle. The Kavarai call themselves Balijas, and derive the name from bali, fire, and jaha , sprung, i.e., "men sprung from fire." Like other Telugu castes, they have exogamous septs, e.g., tupâki (gun), jetti (wrestler), pagadâla (coral), bandi (cart), símaneli, etc. The Kavarais of Srívilliputtîr, in the Tinnevelly district, are believed to be the descendants of a few families, which emigrated there from Manjakuppam (Cuddalore) along with one Dora Krishnamma Nâyudu. About the time of Tirumal Nâyak, one Râmaswâmi Râju, who had five sons, of whom the youngest was Dora Krishnamma, was reigning near Manjakuppam. Dora Krishnamma, who was of wandering habits, having received some money from his mother, went to Trichinopoly, and, when he was seated in the main bazar, an elephant rushed into street. The beast was stopped in its stampede, and tamed by Dora Krishnamma. Vijayaranga Chokkappa sent his retinue and ministers to escort him to his palace. While they were engaged in conversation, news arrived that some chiefs in the Tinnevelly district refused to pay their taxes, and Dora Krishnamma volunteered to go and subdue them. Near Srívilliputtîr he passed a ruined temple dedicated to Krishna, which he thought of rebuilding if he should succeed in subduing the chiefs. When he reached Tinnevelly, they, without raising any objection, paid their dues, and Dora Krishnamma returned to Srívilliputtîr, and settled there.

KAVARAI DEESAI

They could have followed the Vijayanagar expansion south, and settled in these districts. The ancesters of Mr Thumboo Chetty could have acted as the chieftain of a part of the town of Trichinopoly since the father was a Desayi and this appointment is hereditary.

Thumboo Chetty's father, Desayi Royalu Chetti Garu, was the head of his caste. He was an honourable and upright man, highly respected. (page 1; T. Royaloo Chetty).

" The word Desayi means of the country. For almost every taluk in the North Arcot district there is a headman, called the Desayi Chetti, who may be said in a manner to correspond to a Justice of the Peace. The headmen belong to the Kavarai or Balija caste, their family name being Dhanapala a common name among the Kavarais which may be interpreted as ' the protector of wealth". In former days they had very great influences, and all castes belonging to the right-hand faction would obey the Desayi Chetti.

कवराई बालिजास (तेलुगु व्यापारिक जाति) का नाम है, जो तमिल देश में बस गए हैं। कहा जाता है कि यह नाम कौरवर या गौरवर का भ्रष्ट रूप है, जो महाभारत के कौरव या गौरवर के कुरू के वंशज हैं, या शिव की पत्नी गौरी के पुत्र गौरवलु के समकक्ष हैं। अन्य सुझाए गए व्युत्पन्न हैं:

(1) संस्कृत क्वार्यकु का एक भ्रष्ट रूप, जिसका अर्थ है बुराई या निंदा, या आर्य, यानी, बिगड़े हुए आर्य;

(2) संस्कृत कवरा, मिश्रित, या कवराहा, बालों की एक चोटी, यानी, एक मिश्रित वर्ग, क्योंकि कई तेलुगु पेशेवर इस जाति से संबंधित हैं;

(3) कवराई या गवारस, मवेशियों के खरीदार या व्यापारी। कवराई खुद को बालिजास कहते हैं, और यह नाम बाली, आग और जाहा से लिया गया है, यानी, "आग से पैदा हुए लोग।" 

अन्य तेलुगु जातियों की तरह, उनके पास बहिर्विवाही सेप्ट हैं, उदाहरण के लिए, तुपाकी (बंदूक), जेटी (पहलवान), पगडाला (मूंगा), बंदी (गाड़ी), सिमानेली, आदि। ऐसा माना जाता है कि तिन्नवेल्ली जिले में श्रीविल्लिपुत्तिर के कवराई हैं। कुछ परिवारों के वंशज, जो एक डोरा कृष्णम्मा नायडू के साथ मंजाकुप्पम (कुड्डालोर) से वहां आए थे। तिरुमल नायक के समय, एक रामस्वामी राजू, जिनके पांच बेटे थे, जिनमें से सबसे छोटे डोरा कृष्णम्मा थे, मंजकुप्पम के पास राज्य करते थे। डोरा कृष्णम्मा, जो घूमने-फिरने की आदत वाली थी, अपनी मां से कुछ पैसे लेकर त्रिचिनोपोली चली गई और जब वह मुख्य बाजार में बैठी थी, तभी एक हाथी सड़क पर आ गया। जानवर की भगदड़ में उसे रोक दिया गया और डोरा कृष्णम्मा ने उसे वश में कर लिया। विजयरंगा चोक्कप्पा ने उन्हें अपने महल तक ले जाने के लिए अपने अनुचर और मंत्रियों को भेजा। जब वे बातचीत में लगे हुए थे, खबर आई कि टिननेवेल्ली जिले के कुछ प्रमुखों ने अपने करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया, और डोरा कृष्णम्मा ने स्वेच्छा से जाकर उन्हें अपने अधीन कर लिया। श्रीविल्लिपुत्तिर के पास वह कृष्ण को समर्पित एक खंडहर हो चुके मंदिर के पास से गुजरा, जिसके बारे में उसने सोचा कि यदि वह प्रमुखों को वश में करने में सफल हो जाए तो वह इसे फिर से बनवाएगा। जब वह टिननेवेल्ली पहुंचे, तो उन्होंने बिना कोई आपत्ति उठाए अपना बकाया चुका दिया और डोरा कृष्णम्मा श्रीविल्लिपुत्तिर लौट आईं और वहीं बस गईं।

कवराई देसाई

वे दक्षिण में विजयनगर विस्तार का अनुसरण कर सकते थे और इन जिलों में बस सकते थे। श्री थम्बू चेट्टी के पूर्वज त्रिचिनोपोली शहर के एक हिस्से के मुखिया के रूप में कार्य कर सकते थे क्योंकि उनके पिता देसीई थे और यह नियुक्ति वंशानुगत है।

थंबू चेट्टी के पिता, देसाई रोयालु चेट्टी गारू, अपनी जाति के मुखिया थे। वह एक सम्मानित और ईमानदार व्यक्ति थे, बहुत सम्मानित थे। (पेज 1; टी. रॉयलू चेट्टी)।

"देशाई शब्द का अर्थ देश है। उत्तरी अर्कोट जिले के लगभग हर तालुक के लिए एक मुखिया होता है, जिसे देसीई चेट्टी कहा जाता है, जिसे शांति के न्यायाधीश के अनुरूप कहा जा सकता है। मुखिया कवराई के होते हैं या बलिजा जाति, उनके परिवार का नाम धनपाल है जो कावरियों के बीच एक सामान्य नाम है जिसकी व्याख्या 'धन के रक्षक' के रूप में की जा सकती है। पूर्व दिनों में उनका बहुत बड़ा प्रभाव था, और दाहिने हाथ के गुट से संबंधित सभी जातियाँ देसाई चेट्टी का पालन करती थीं दक्षिणी भारत की जातियों और जनजातियों से निकाला गया। लेखक: थर्स्टन, एडगर, 1855-1935; रंगाचारी, के.

LINGAYAT BANIYA - बनिया: लिंगायत

LINGAYAT BANIYA - बनिया: लिंगायत

मध्य प्रांत में लिंगायत बनियों की संख्या लगभग 800000 है, जो वर्धा, नागपुर और सभी बरार जिलों में बड़ी संख्या में हैं। एक अलग लेख में लिंगायत संप्रदाय का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। लिंगायत बनिया एक अलग अंतर्विवाही समूह बनाते हैं,

और वे न तो अन्य बनियों के साथ और न ही लिंगायत संप्रदाय से संबंधित अन्य जातियों के सदस्यों के साथ भोजन करते हैं और न ही विवाह करते हैं। लेकिन उन्होंने बनियों का नाम और व्यवसाय बरकरार रखा है। इनके पांच उपविभाग हैं, पंचम, दीक्षावंत, मिर्च-चाहते, तकलकर और कनाडे। पंचम या पंचम-सलिस लिंगायत संप्रदाय में परिवर्तित मूल ब्राह्मणों के वंशज हैं। वे समुदाय के मुख्य निकाय हैं और आठ गुना संस्कार या ईजिता-वर्ण के रूप में जाने जाने वाले द्वारा आरंभ किए जाते हैं।

दीक्षावंत, दीक्षा या दीक्षा से, पंचमसालिस का एक उपखंड है, जो स्पष्ट रूप से दीक्षित ब्राह्मणों की तरह शिष्यों को दीक्षा देते हैं। कहा जाता है कि तकलकरों का नाम ताकली नामक जंगल से लिया गया है, जहां उनकी पहली पूर्वज ने भगवान शिव को एक बच्चे को जन्म दिया था। कनाडे कैनरा से हैं। चिलीवंत शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं है; ऐसा कहा जाता है कि इस उपजाति का कोई सदस्य अपना भोजन या पानी फेंक देता है यदि यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा देखा जाता है जो लिंगायत नहीं है, और वे पूरा सिर मुंडवा लेते हैं। उपरोक्त अंतर्विवाही उपजातियाँ बनाते हैं। लिंगायत बनिया में बहिर्विवाही समूह भी हैं, जिनके नाम मुख्यतः निम्न जाति के हैं। इनके उदाहरण हैं काओडे, कावा से कौवा, तेली से तेल बेचने वाला, थुबरी से बौना, उबडकर से आग लगाने वाला, गुड़कारी से चीनी बेचने वाला और धामनगांव से धामनकर। उनका कहना है कि गणित या बहिर्विवाही समूहों को अब नहीं माना जाता है और अब एक ही उपनाम वाले व्यक्तियों के बीच विवाह निषिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी लड़की की शादी किशोरावस्था से पहले नहीं की जाती है तो उसे अंततः जाति से बाहर कर दिया जाता है, लेकिन यह नियम शायद पुराना हो चुका है। विवाह का प्रस्ताव लड़के या लड़की पक्ष की ओर से आता है, और कभी-कभी दूल्हे को उसके यात्रा व्यय के लिए एक छोटी राशि मिलती है, जबकि अन्य समय दुल्हन को - 1 संप्रदाय की कुछ सूचना के लिए लेख बैरागी देखें। कीमत अदा की जाती है. शादी में दूल्हे के हाथों में लाल रंग का चावल और दुल्हन के हाथों में जुआरी का रंग पीला रखा जाता है। दूल्हा दुल्हन के सिर पर चावल रखता है और वह उसके पैरों पर जुआरी रख देती है।

पानी से भरा एक बर्तन जिसमें एक सुनहरी अंगूठी है, उनके बीच रखा जाता है, और वे पानी के नीचे अंगूठी पर एक साथ अपने हाथ रखते हैं और असली के अंदर बने एक सजावटी छोटे विवाह-शेड के चारों ओर पांच बार घूमते हैं। एक दावत दी जाती है, और दुल्हन का जोड़ा एक छोटे से मंच पर बैठता है और एक ही पकवान से खाना खाता है। विधवाओं के पुनर्विवाह की अनुमति है, लेकिन विधवा अपने पहले पति या अपने पिता के वर्ग के किसी पुरुष से शादी नहीं कर सकती है। तलाक को मान्यता मिल गई है. लिंगायत मृतकों को शिव के लिंगम या प्रतीक के साथ बैठी हुई मुद्रा में दफनाते हैं, जिसने अपने जीवनकाल के दौरान मृत व्यक्ति को कभी नहीं छोड़ा था, जिसे उसके दाहिने हाथ में रखा गया था। कभी-कभी कब्र के ऊपर शिव की छवि वाला एक मंच बनाया जाता है। वे शोक के प्रतीक के रूप में सिर नहीं मुंडवाते।

उनका प्रमुख त्योहार शिवरात्रि या शिव की रात है, जब वे भगवान को बेल के पेड़ की पत्तियां और राख चढ़ाते हैं। लिंगायत को कभी भी शिव के लिंगम या लिंग चिन्ह के बिना नहीं रहना चाहिए, जिसे चांदी, तांबे या पीतल के एक छोटे से डिब्बे में गर्दन के चारों ओर लटकाया जाता है। यदि वह उसे खो देता है, तो उसे तब तक न खाना चाहिए, न पीना चाहिए और न ही धूम्रपान करना चाहिए जब तक कि वह उसे पा न ले या दूसरा प्राप्त न कर ले। लिंगायत किसी भी उद्देश्य के लिए ब्राह्मणों को नियुक्त नहीं करते हैं, बल्कि उनके स्वयं के पुजारी, जंगम, द्वारा सेवा की जाती है, जिन्हें पंचम समूह के सदस्यों से वंश और दीक्षा दोनों द्वारा भर्ती किया जाता है। लिंगायत बनिया व्यावहारिक रूप से सभी तेलुगु देश के अप्रवासी हैं; उनके तेलुगु नाम हैं और वे अपने घरों में यही भाषा बोलते हैं। वे अनाज, कपड़ा, किराने का सामान और मसालों का व्यापार करते हैं।