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Friday, June 22, 2012

पुरवाल, पोरवाल समाज का इतिहास-PURWAL,PORWAL

पुरवालों का मूल स्थान अयोध्या के आस–पास का क्षेत्रा है। माना जाता है कि सन् 1700 के आसपास पुरवाल वैश्यों के काफी परिवारों का समूह अपने मूल स्थान को छोड़ कर दिल्ली आया। संचार व यातायात की सुविधाएं नहीं होने, निर्धन व अशिक्षित होने और दिल्ली में व्यवसाय में व्यस्त रहने के कारण उनका अपने मूल स्थान से संपर्क समाप्त हो गया। समय बीतने के साथ–साथ वे दिल्ली के स्थायी निवासी हो गए।

दिल्ली में जहां आज आजाद मार्किट है उस समय इसके बीचों बीच एक नहर हुआ करती थी। इस नहर के उत्तर में जहां तीस हजारी कोर्ट स्थित है वहां अविकसित भूमि थी। यहीं आकर पुरवाल परिवारों ने डेरा डाला। प्रारंभ में कुछ ही परिवार यहां आए तथा रोजगार की संभावनाएं देखकर और अधिक परिवार बाद में उनके साथ आ मिले। आजीविका के लिए इन्हें नहर के इस पार शहर में आना होता था। तीस हजारी की सीध में नहर पार करने पर सदर बाजार व वर्तमान बहादुरगढ़ रोड आता था और पूर्व की ओर बढ़ कर नहर पार करने पर वर्तमान खारी बावली का क्षेत्रा था। ये दोनों ही इलाके व्यवसाय के मुख्य केन्द्र थे और रोजगार के अवसरों से भरपूर थे। इन दोनों स्थानों में से जिसकी जहां रोजगार व रिहायश की अनुकूल व्यवस्था हुई वह वहां बस गया। इस प्रकार पुरवाल समाज दो भागों में बंट कर कूचा नवाब मिर्जा (वर्तमान कूचा शिव मंदिर) तथा गली महावीर (बहादुरगढ़ रोड) में बस गया। इन दोनों स्थानों पर ये लोग पहले किरायेदार रहे और बाद में धीरे–धीरे इन इलाकों के सभी मकान खरीदते गए। जब से ये लोग दिल्ली में आकर बसे तभी से आपसी परिवारों में विवाह संबंध कर रहे हैं।

पुरवालों का मुख्य व्यवसाय हलवाई का काम था। इस कार्य में वे दक्ष थे और आज भी हैं। दिल्ली में बस जाने के बाद अधिकतर लोगों ने हलवाई का ही काम किया। आज भी अनेक लोग इस व्यवसाय में हैं। परम्परागत मिठाईयों में घेवर, फेनी, पेठा, अनरसे (चावल के आटे, घी, चीनी व तिल से बनी मिठाई) जिसे कहीं कहीं संभवतः बताशफेनी भी कहा जाता है, और अनरसे की गोलियां, के वे विशेषज्ञ माने जाते हैं। घेवर व फेनी बनाने में तो इनका एकाधिकार है। लगभग पूरी दिल्ली और आस–पास के इलाकों को ये लोग घेवर व फेनी सप्लाई करते हैं। कुछ लोगों ने छोटे–छोटे व्यवसाय किए और कुछ अनाज, मसालों, घी, तेल आदि की दलाली करने लगे। उस समय खारी बावली इन वस्तुओं की प्रमुख मण्डी थी, आज भी है। इस कार्य में इन्होंने काफी अच्छी साख अर्जित की। व्यापारियों के बीच इनकी विश्वस्नीयता उच्च स्तर की रही है।

पुरवालों के व्यवसाय का वर्णन करते हुए यह उल्लेख आवश्यक है कि इन्होंने हमेशा व्यापार ही किया है चाहे उसका स्तर छोटा हो या बड़ा। आज भी लगभग 95 प्रतिशत लोग निजी व्यापार में संलग्न हैं। शेष कुछ ही लोग सरकारी या गैरसरकारी नौकरियों में हैं। पुरवाल सदैव नैतिकता से व्यापार करते हैं और अपनी छवि को उज्जवल बनाए रखते हैं। किसी का धन मार लेना ये बहुत ही अनैतिक कार्य मानते हैं। किसी भी पुरवाल व्यापारी ने स्वयं को दीवालिया घोषित नहीं किया है।

पुराने जमाने में किसान व मजदूर आवश्यकता पड़ने पर सेना में भर्ती हो जाया करते थे जिनकी सेवाएं केवल युद्धकाल में ही ली जाती थीं। शांतिकाल में ये लोग अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते थे। दिल्ली आने के बाद कुछ पुरवालों ने अंग्रेजी सेना में नौकरी की।

1857 के स्वतंत्राता संग्राम से ये लोग भी प्रभावित हुए और अनेक भारतीय सैनिकों की भांति इन्होंने अंग्रेजी सेना में रहते हुए भी स्वतंत्राता सेनानियों की मदद की। उस समय दिल्ली पर भारतीयों का कब्जा था। अंगंरेज दिल्ली वापिस हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। अंग्रेज जनरल जॉन निकलसन ताबड़तोड़ गोलाबारी करके कश्मीरी गेट की फसील को गिराने में जुटा था। उसे सफलता की ओर बढ़ता देख 23 सितम्बर, 1857 को स्वतन्त्राता सेनानियों ने उसे गोली मार कर ढेर कर दिया और कुछ देर के लिए अंग्रेजों को सफलता से दूर कर दिया। यह दीगर बात है कि 1857 की क्रांति विफल हो गई और अंग्रेजों की सत्ता दिल्ली में स्थापित हो गई। इसकी बहुत संभावना है कि निकलसन किसी पुरवाल की गोली से मरा हो क्योंकि स्वतन्त्राता क्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजों ने पुरवालों को ढूंढ ढूंढ कर मौत के घाट उतारा।

क्रांति को दबाने के बाद अंग्रेज अत्यन्त क्रूर हो गए और उन्होंने क्रांतिकारियों तथा उन सैनिकों को चुन चुन कर मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया जिन्होंने क्रांतिकारियों का साथ दिया था। उन्हें ज्ञात हो गया कि निकलसन को मारने वाली टुकड़ी में पुरवाल भी थे। जो भी पुरवाल अंग्रेजों के हाथ लगा उसे मार डाला गया। शेष सभी अपनी जान बचाने के लिए जहां तहां छुप गए और अपनी पहचान को भी छिपा लिया। किसी ने भी स्वयं को पुरवाल नहीं कहा। चूंकि 1857 के 90 वर्ष बाद तक भी अंग्रेजों का ही राज रहा अतः भय के कारण बाद में भी वे अपनी जाति का नाम जुबान पर लाने का साहस नहीं कर सके। अंग्रेजों की क्रूरता का भय इतना बैठा हुआ था कि इस घटना के बाद पुरवाल कभी दोबारा फौज में भरती नहीं हुए क्योंकि उन दिनों फौज में भरती होने के लिए जाति का नाम बताना आवश्यक होता था; इसी के अनुसार उन्हें भि–भि बटालियनों में रखा जाता था।

अंग्रेजों के भय से पुरवाल अपनी पहचान छिपा कर रहने लगे। जान माल की रक्षा हेतु पुरवाल मजबूरी में पहचान छिपा कर बेशक रहने लगे हों परन्तु अपनी मूल जाति और अस्मिता को नहीं भूले और न ही अपनी जाति का किसी अन्य जाति में विलय किया। इनके आसपास अनेक वैश्य तथा दूसरी जातियां रहती थीं। पुरवालों ने अपने छोटे समूह के भीतर ही विवाह संबंध करने मंजूर किए परन्तु किसी भी दूसरे समाज में संबंध नहीं किए। दूसरे वैश्य व अन्य समाजों ने इन्हें अपने में मिलाने के बहुत प्रयास किए और कई प्रकार के प्रलोभन भी दिए परन्तु ये बिना डिगे हुए अपने स्थान पर टिके रहे। अपनी पहचान को बचाए रखने के लिए इन्होंने बड़े लम्बे समय तक संघर्ष किया है।

इस प्रकार पुरवाल जाति अपने मूल स्थान से विलग होकर वहां वालों के लिए विस्मृत हो गई तथा पलायित स्थान पर पुरवालों ने स्वयं अपनी पहचान को छिपा लिया। यही कारण है कि वैश्यों के इतिहास में इस जाति का नाम तो मिलता है परन्तु विवरण विस्तार से नहीं मिलता। यूं भी यह जाति बहुत संकोची व अंतर्मुखी रही है जिस कारण इन्होंने कभी अपना प्रचार नहीं किया और इसीलिए इन्हें अधिक लोग नहीं जान पाए

साभार : पुरवाल वैश् समाज

16 comments:

  1. Wrong information ....porwal are basically belong to gujrat and rajasthan and MP... Who migrate to U.P.....in agra etawah kanpur and lakhimpur,gonda,sitapur..

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    1. Hlo sir can you give me right information please.....
      Any link

      My Whtsapp.. 8909873110

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    2. Purwar ki caste me aate hai

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  2. Jsk sir ap mujhe porwal ki information Watsp par de sakte hai please. ..9303629029

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  3. Ye kis category m aate hai general m ya obc m

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  4. Right sir i am belong to Malva area MP

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  5. Mr. manish porwal pls share visha porwal kuldevi, and other porwal details at shahshreyashp@gmail.com or provide your whatsapp number on my email id. Thabks

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  6. Sir plz tell me about the caste detail Gupta porwal.

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    1. Any type of bania in India can be write Gupta, like Sharma, any type of Brahman write sharma

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  7. Sir my question porwal not (Purwal )about distribution at uttrakhand

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  8. राजा टोडरमल को पोरवाल समाज का महापुरुष बताया जा रहा है , यह क्या सच ह , उसकी जानकारी दें । जब कि वो कायस्थ / ब्राह्मण समाज के बताए जाते है। कहीं भी यह लेख नहीं आता जिसमें उन्हें पोरवाल / पुरवाल बताया गया हो ।

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